“तीन रंग वाले कपड़े पहन कर”
शहीदों पर —-‘
निकला हूँ आज मैं सज धज कर,
देखो तीन रंग वाले कपड़े पहन कर,
रोना नहीं मेरी प्यारी माँ,
बाँहें फैलायें खड़ी मेरी भारत माँ।
तेरा बरसों का कर्ज धोना है,
आज नींद भर के सोना है ,
एक ही तमन्ना है बस जीवन की,
जागूँ जब फिर से तेरी ही गोदी पाऊँ।
तेरे चरणों की रज से ,
फिर से माथे तिलक लगाऊँ,
तिरंगे में लिपट कर फिर से,
सज धज कर बारात लेकर आऊँ।
उतार दे माँ मेरी नजर तू,
कि दुश्मन की आँख फूट जाये,
बुरी नजर से जो देखे तुमको,
मिट्टी में बस मिल जाये।
साँस जो थोड़ी बाकी होती,
माँ तुझे निहार लेता,
तेरी अनुपम छटा,
मैं अपने सीने में बाँध लेता।
निकला हूँ आज मैं सज धज कर,
देखो तीन रंग वाले कपड़े पहन कर।।
©निधि…