तीन दोहे
सच लिखना कवि-कर्म है, लगे जगत नासाज़ |
बेशक कड़वी हो दवा, करती मर्ज इलाज़ ||
बिना पारखी कब मिले, हीरे को पहचान |
मूढ़जनों को बस लगे, पाहन-अंश समान ||
बाबू होती बैल-सी, अज्ञानी तासीर |
मेधा तो बस नाम की, होता बड़ा शरीर ||
बी०एल०तोन्दवाल