तीन जनक छन्द
इ सावन क जे रूप अछि
वसुन्धरा जे भीजतइ
इ पृथ्वी क अनुरूप अछि
***
इ बरखा क आनन्द अछि
भीजत समस्त विश्व मे
इ वर्षाऋतु क छन्द अछि
***
अन्तरघट धरि प्यास अछि
बरखा सँ नहियेँ बुझब,
इ मनवा बड़ उदास अछि
***
इ सावन क जे रूप अछि
वसुन्धरा जे भीजतइ
इ पृथ्वी क अनुरूप अछि
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इ बरखा क आनन्द अछि
भीजत समस्त विश्व मे
इ वर्षाऋतु क छन्द अछि
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अन्तरघट धरि प्यास अछि
बरखा सँ नहियेँ बुझब,
इ मनवा बड़ उदास अछि
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