$तीन घनाक्षरी
#कवित्त छंद
कवित्त एक वार्णिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16, 15 के विराम से 31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में गुरू वर्ण आना अनिवार्य है। छन्द की गति को ठीक रखने के लिये 8, 8, 8 और 7 वर्णों पर यति रहनी चाहिये। इसके दो प्रकार हैं:-
1.मनहरण कवित्त और घनाक्षरी। घनाक्षरी छंद के दो भेद हैं:- 1.रूप घनाक्षरी, 2.देव घनाक्षरी।
उदाहरण-
ज्ञान बिना मान नहीं, आन बिना लक्ष्य नहीं,
त्याग बिना प्रेम नहीं, सोच यही ठानिए।
मीत बिना गीत नहीं, रीत बिना राह नहीं,
कर्म बिना वाह नहीं, साँच यही मानिए।।
आदि बिना अंत नहीं, शाँति बिना संत नहीं,
धर्म बिना पंथ नहीं, बात सभी जानिए।
दृष्टि बिना दृश्य नहीं, वृष्टि बिना सृष्टि नहीं,
हार जहाँ जीत वहाँ, सीख अदा तानिए।।
लूटपाट ख़ुशी नहीं, दर्द की कहो तलाश,
परिणाम बुरा होगा, पढ़ो इतिहास में।
ख़ुदी छलावा सुनो जी, इसे मत चुनो तुम,
स्वप्न नये बुना करो, लाइए अभ्यास में।।
मुस्क़ान भरो मौन में, धीर वीर जाओ बन,
जीवन हो मधुबन, झूमिए उल्लास में।
चीज वही सही करे, कार्य उचित जो भी हो,
द्रव्य बहुत मगर, जल सही प्यास में।।
संग करो सत्य भरो, घात नहीं भूल नहीं,
फूल बनो शूल नहीं, सीरत सुधारिए।
बोल वही तोल सही, जीत सके रूह सभी,
नूर खिले प्यार मिले, प्यार सदा वारिए।।
खेल वही मेल बने, ख़ार जहाँ रार वहीं,
द्वार ख़ुशी तभी खिले, दंभ बदी मारिए।
आँख मिले प्रीत जगे, ताल यही चाल यही,
रिश्तों ख़ातिर चाहे, निज को भी हारिए।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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