तीन घंटे..!
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कुसंग से नाता जोड़ा,
ज़िन्दगी को पीछे छोड़ा।
वो तीन घंटे के शो में दौड़ा।।
अच्छाई को वहीं छोड़ आया,
बुराई को साथ ले आया।
वो सिनेमा से क्या पाया और
ज़िन्दगी के तीन घंटे खो आया।।
घर को सिनेमा हाल बनाया-
मुंह से जर्दा थूक, बिड़ी का धुआं उड़ाया,
न कुछ बात में- घर में आतंक मचाया।
उसके सिर पे सिनेमा का भूत मंडराया।।
बाप ने बेटे का डंडा खाया-
बाप के सिर से खून निकल आया।
माॅं-बाप के लाड़-प्यार ने ही-
बेटे को ऐसा उपद्रवकारी बनाया।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल(उज्जैन)*।
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