तीन कविताएँ
[20]
शब्द चितेरा
मैं भी होता शब्द चितेरा ,कोई बात न्यारी लिखता |
होरी की दुःख – गाथा लिखता , धनिया की लाचारी लिखता ||
बाप – बेटे या भाई – भाई में , रिश्ते आखिर बिखरे क्यूँ |
धन – बल – सत्ता की खातिर , क्यूँ हो रही मारामारी लिखता ||
सभ्य शहर की गलियों में , क्यों मंडराए काले साए |
क्यों फैले हैं गली मोहल्ले भय भूख बीमारी लिखता ||
काट – काट कर पेट को जिसने , सुखद बुढ़ापा चाहा था |
वृधाश्रम में घुट कर फिर क्यों , उसने उम्र गुजारी लिखता ||
मीलों सड़कें खोदीं फिर भी क्यों , पैदल चलना हिस्से आया |
अन्न उगाकर भूखे रहना , उनकी व्यथा यह सारी लिखता ||
अपना सर्वस्व लुटाया जिसने , मां – भगिनी – बेटी – कांता बन |
फिर क्यों बांधे खड़ी बेड़ियाँ , इस दुनिया में नारी लिखता ||
बरसों पन्ने पलटे फिर भी , दफ्तर – दफ्तर घूम रहे |
शिक्षित युवा – हाथों ने क्यों , पकड़ी आज बेकारी लिखता ||
न लिखता परियों की बातें – न ही राजा रानी की |
भोग रहे जो हम तुम दोनों , अपनी और तुम्हारी लिखता ||
अशोक दर्द ,प्रवास कुटीर बनीखेत , चंबा हिमाचल प्रदेश १७६३०३
[21]
बस्ती में आग …
देकर मजहब की दुहाई किसी ने |
बस्ती में आग फिर लगाई किसी ने ||
बच्चे बस्ती के फिर हो गये यतीम |
ममता फिर सिर से उठाई किसी ने ||
पंछी फिर टहनियों में सिमट से गये |
हवा में फिर गोली चलाई किसी ने ||
सहमी आँखों से फिर टपके आंसू |
गोद फिर से किसी की चुराई किसी ने ||
आज फिर चौराहा पड़ा है सुनसान |
बस्ती फिर कहीं न कहीं जलाई किसी ने ||
लोग लेकर खंजर फिर लगे हैं लड़ने |
बात मजहब की फिर उठाई किसी ने ||
लिखा था जिसमें राम रहीम दोनों एक हैं |
फिर व्ही किताब जलाई किसी ने ||
अशोक दर्द बनीखेत चंबा ,हिमाचल प्रदेश
[22]
याद आता है …
जिसे मैं भूल बैठा था वो मंजर याद आता है |
मेरे कातिल तेरे हाथों का खंजर याद आता है ||
करते थे यहां हम तुम इबादत प्यार की हमदम |
वो पनघट याद आता है वो मन्दिर याद आता है ||
तेरी इक याद का जादू मेरे सिर चढ़ के बोला था |
उठा था फिर जो शहर में तेरे बवंडर याद आता है ||
न पानी था न गहराई मगर फिर भी मेरे हमदम |
डुबाई थी मेरी कश्ती समन्दर याद आता है ||
मेरी ऊँगली पकड़कर जो मुझे था राह में लाया |
कठिन राहों में अब भी वो कलंदर याद आटा है ||
तेरी चाहत में जब भी मैं गहरे डूब जाऊं तो |
खाली हाथ जाता वो सिकन्दर याद आता है ||
[23]