तीनों सेना के जो सिप्हसालार थे।
ग़ज़ल
काफ़िया- आर
रदीफ़- थे
212…..212…..212…..212
तीनों सेना के जो सिप्हसालार थे।
काल का क्रूर फंदा था मझधार थे।
नाव डूबी किनारे पे आने को थी,
काम आए न बेकार पतवार थे।
कर्ण अर्जुन से थे वो बली वीर सब,
उनके तेवर खतरनाक तलवार थे।
टीम के साथ जनरल मिटे देश पर,
देश दुनियां में ये ही समाचार थे।
देश धरती गगन चांद तारे सभी,
फूटकर रोए औ’र कितने बेज़ार थे।
तोप गोले तो क्या दुश्मनों के लिए,
खुद में वो इक खतरनाक हथियार थे।
युग युगों में जनम लेते हैं वीर ये,
देश का सिर था ऊंचा वो सरदार थे।
देश खातिर जिए देश खातिर मरे,
देश प्रेमी थे वो देश का प्यार थे।
……..✍️ प्रेमी