****** तीज-त्यौहार ******
****** तीज-त्यौहार ******
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झूला झूल रहीं हैँ सखियाँ,
तीज आई प्यासी है अखियाँ।
तीज त्यौहार मनोरम आया,
यूं भूलो पिछली रुसवाइयाँ।
रंग बिरंगे पहने कपड़े प्यारे,
झूम रही हैँ जैसे तितलियाँ।
चढी जवानी यौवन है आया,
छेड़खानियों भरी हैँ मस्तियाँ।
तरुवर पीछे खड़े दीवानें,
ताक रहे है नूतन जवानियाँ।
खुली आँखों से देखें सपने,
प्यारी सी हैँ प्रेम कहानियाँ।
उमड़-उमड़ के बादल गरजें,
बूँदे टपके भीगी दीवानियाँ।
भीगे बदन शीतल हैँ फुहारें,
तंग करती हैँ बैरन तन्हाइयाँ।
अंग अंग चढ़ती है तरुणाई,
गूंजेगी कब घर शहनाइयाँ।
दूर बहुत रहते प्यारे साजन,
बढ़ती – रहती हैँ परछाइयाँ।
झूम के आया सावन प्यारा,
बातें बतलाती हैँ सहेलियाँ।
तन – मन में है आग लगाएं,
बूझ ना पाए कोइ पहेलियाँ।
सावन मास मनसीरत भारी,
याद आये सारी नादानियाँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)