तिल का ताड़!
कैसे बन गया,
तील का ताड़,
जब पी एम अपने,
गये पंजाब,
वांछित स्थल पर,
जब वह नहीं जा पाए,
लौट कर वहां से वापस आए,
आकर वहां से वह बोले,
कह देना अपने सी एम से,
जिंदा लौट आया हूं मैं,
थैंक्स कहना जाकर उनसे,,!
बस इतना कह जाना,
मान लिया गया ताना,
फिर इसी पर बवाल मचा,
समर्थकों ने स्वांग रचा,
पी एम की जान जोखिम में थी,
ऐसी योजना सी एम की थी,!
वार प्रति वार होने लगे,
जाने क्या क्या कहने लगे,
तब सुप्रीम न्यायालय ने संज्ञान लिया,
इनके झगड़ों पर विराम दिया,
यह चूक हुई व्यवस्था में,
जांच होनी थी ऐसी अवस्था में,
फिर जांच पर कहा सुनी हो गई,
अपनी अपनी जांच बैठ गई,
इसका भी ध्यान सुप्रीम कोर्ट ने रखा,
अलग से अपने स्तर पर जांच पैनल रखा!
अब थोड़ा सा शोर थमा है,
जांच का भरोसा जगा है,
पर बात यहां पर आ ठिठकी है,
पी एम ने ये बात क्यों कह दी है,
क्या उन्हें यह सब कहना चाहिए था,
या सिस्टम के अनुसार ही कुछ करना था!
यही आज कल चर्चा का मुद्दा है,
इसके पीछे का अभिप्राय क्या है,
और क्या है इसका निहितार्थ,
क्या दल का है इसमें स्वार्थ!
इसी सोच ने तिल का ताड़ कर दिया,
लोकतंत्र की मान्यताओं का कबाड़ कर दिया,
ऐसे लगा कि निति नियंताओं को,
देश से ज्यादा दल का हित ज्यादा बड़ा है,
और यही यक्ष प्रश्न हम सबके सम्मुख खड़ा है,!
कहा सुना जाता रहा है,
पी एम-सी एम,
किसी एक दल के होकर भी,
एक दल के नहीं रहते,
ठीक वैसे ही जैसे,
राष्ट्रपति भी एक विचार धारा के होकर भी,
किसी विचारधारा को नहीं ओढ़ते,
वो पुरे राष्ट्र के साथ सभी दलों के संरक्षक होते हैं,
ऐसे ही पी एम- सी एम भी,
एक दल तक सीमित नहीं होते!
वह हर नागरिक के संग रंगे होते हैं,
वह संविधान से बंधे होते हैं!