तिल,गुड़ और पतंग
तिल,गुड़ और पतंग की रिवाज है
लुभाती बहुत ये सभी को आज है
तिल,गुड़…………….
छोटे-बड़े ये सब चाव से खाते हैं
लेकर पतंग छत पर चढ़ जाते हैं
तिल,गुड़…………….
चारों तरफ यूँ पतंगबाजी होती है
दिलों में भी खुशमिजाजी होती है
तिल,गुड़……………..
तिल और गुड़ के मिष्ठान खाते हैं
गले मिल के सब बैर भूल जाते हैं
तिल,गुड़……………..
कवि कल्पना की उड़ान भरते हैं
“विनोद” वे उम्दा रचना करते हैं
तिल,गुड़……………..
स्वरचित
( V9द चौहान )