तिरी बारहा याद आए मुझे
तिरी बारहा याद आए मुझे
तिरी याद हर पल सताए मुझे।
हमेशा तिरी बात करते हुए
पुराना ज़माना रुलाए मुझे।
सभी को पता है मिरे हाल का
ज़रा कोई अपनी सुनाए मुझे।
मिरे दर्द का मैं भला क्या करूँ
बिला बात के ही रुलाए मुझे।
कहाँ सीख पाया मोहब्बत भला
कभी प्यार से वो सिखाए मुझे।
नहीं नींद आती मुझे आज कल
जबीं चूम कोई सुलाए मुझे।
भले मैं जमी धूल जैसा मगर
हवा ही कभी बस उड़ाए मुझे।
भटक के भला मैं कहाँ आ गया
सही राह कोई बताए मुझे।
ज़माने हुए तुम दिखे ही नही
ख़ुदा ख़्वाब में ही दिखाए मुझे।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’