तिरस्कार
चुभे हुए कांटो से,
मैंने जब यह पूँछा,
क्या रिश्ता है मेरा तुझसे,
खून का या पीढ़ी दर पीढ़ी का,
कोई बगावत या ऋण है क्या मेरा,
दर्द होता है मुझको,
तेरा यहां आने का।
हे मुसाफिर !तू क्या जाने,
तुझको दर्द नहीं है मेरा ,
हूंँ मैं पुष्प का रक्षक ,
संशय ये मत करना ,
राह में बहुत है काँटे ,
भूल तू यह न जाना ,
हुआ दर्द भी मुझको ,
जब तूने निकाल मुझे फेंका ।