तिरंगा बोल रहा आसमान
तिरंगा बोल रहा आसमान
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तीन रंगों से बना ये तिरंगा
भारत जन अभिमान तिरंगा
फर फर उड़ फहर रहा तिरंगा
आकाश पाताल भूधर जल में
जन गण मन बसा तिरंगा प्यारा
गवाह मैं एक उस मां की आंसु
भारत मां की सीमा इज्जत
आन बान शान मान सुरक्षा
लाल खून लथपत निज लाल
को शव शस्या तिरंगा लिपटा
गाल चुमते गौरवपूर्ण विदाई का
ये महा प्रस्थान है बेटा तुम्हारा
बोलते सुना ममतामयी आजादी
पाने भारत माता के इस मां का
अमर बलिदान मां गौरव का
सूरज चांद सितारों में देखुंगी
एक गवाह तिरंगा बोल रहा हूं
ड़रा नहीं जरा भी भारत वीर सपूत
गोरे के जघन्य जुर्म अत्याचारों से
हिला झुका हटा नहीं मेरा जिगर
अविराम गोले गोली बौछारों में
एक दो दस हो तो गिना दुं उंगली
लाखों वीरों ने शान-ए- तिरंगा हाथ
पकड़ सीना तान खड़ा आजादी
खातिर हंस हंस खून बहाया था
भारत मां की जय बोल ! मौत गले
लगा चिर निद्रा को अपनाया था
स्वच्छ समीर नयनों के जल से
वन उपवन हरित खेत क्यारी में
वर्फ चांदी सी सरताज हिमालय
चरण परवारते नद्य सागर का
प्रत्याक्षी एक गवाह हुं मैं तिरंगा
स्वर्णिम इतिहास शहीदों का
चिल्लाते भागते ओ !माय गॉड
बोलते कायर फिरंगी सात समंदर
पार गौरे के चूर चूर हुए घमण्ड
देख भारत भारती के हंसने का
फर फहर उड विजय विश्व तिरंगा
बोल रहा गवाह एक आसमान से
सर्विलांस निगाह रख नभ में
वॉर्डर सीमा चौकसी दुश्मन पर
हुंकार से अहंकार तोड़ने खड़ा
फर फर फराह स्वभिमान तिरंगा
आजादी विजय शौर्य चिन्ह का
एक गवाह तिरंगा मैं बोल रहा हूं ।
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कविवर :
तारकेश्वर प्रसाद तरुण