तिमिर
तिमिर
सुन,स्याह तिमिर के पीछे देखो,झांक रहे हैं उजियारे
हटाकर घटा तम की,कर उजास अंधियारे जो गलियारे।
क्यों चुरा बैठी है अमा तू झिलमिलाते
चांद सितारों की तरुणाई,
बस तब तक कर ले मनमानी,
जब तक ऊर्जस्वित किरणेंशर्माईं।
सुनते ही कलरव चिड़ियों का,
जग में उजियारा छा जाएगा।
खुलते ही पलकें फूलों की,
नूतन प्रभात फिर खिल जाएगा।
छिन्न-भिन्न होगी स्याह अज्ञान की स्याही
फैला चाहे हो तम अनंत पाताल की गहराई।
सुन बे-लगाम सा घोड़ा है वह तम, पर
चलता वह ज्योति का आंचल थाम।
तम से निराश न हो तू नीलम,
नव सूर्य मिलेगा!सुमन खिलेगा,
सुन तिमिर से उदास न हो तू ,फिर दीप जलेगा, अंधकार ढलेगा!सुन व्यर्थ नहीं हर प्राणी का तप, व्यर्थ न होगा चंद्र उजियाराव्यर्थ नहीं वसुधा का आंचल,व्यर्थ न होगी दिव्य ज्ञान की धारा,रख कर्म और खुद पर अडिग विश्वास तू नीलम
है प्रकृति का नियम बदलना,छट जाएंगे सारे ही तम।
नीलम शर्मा