‘तिमिर पर ज्योति’🪔🪔
‘तिमिर पर ज्योति’
🪔🪔🪔🪔🪔
फिर फैलेगी,
तिमिर पर ज्योति।
धरा चमकेगी,
जैसे चमके मोती।
होगी हर जगह,
खूब साफ-सफाई।
सब खुशियां मनाएंगे,
नभदीप लटकाएंगे।
मचेगी धूम-धड़ाका,
फूटेगा पटाखा।
अमावस आकाश में,
फैला प्रकाश होगा।
घर-घर लक्ष्मी का,
वास होगा।
झिलमिल-झिलमिल,
करेंगी दीवारें।
पग-पग होंगे,
प्रदीप प्यारे।
बंटेंगे मिठाईयां,
द्वारे-द्वारे।
झूमेंगे-गायेंगे,
बच्चे सारे।
हर कोई प्रांजल,
राष्ट्र का प्रतीक होगा।
आज असत्य,
सत्य से विकल होगा।
पंकज सा ही,
घर-घर कमल होगा।
संदीप से आज,
रात निर्मल होगा।
जब आयेगी ये,
त्योहार निराली।
नहीं दिखे कहीं,
फिर ये रात काली।
चिराग जलेगी,
और मनेगी दीवाली।
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स्वरचित सह मौलिक;
…✍️पंकज कर्ण
……….कटिहार।