‘तिनके’
‘तिनके’
सर पर छाँव दे जाते हैं,
ये घास-फूस के तिनके,
पूरा गाँव दे जाते हैं,
ये घास-फूस के तिनके।
उड़कर कभी बिखर जाते हैं,
कहीं पाँव तले कुचले जाते हैं,
नहीं करते गिला कभी किसी से,
ये घास-फूस के तिनके।
यूँ इतने भी निर्बल नहीं हैं,
भीतर इनमें भी आग कहीं है,
पल में सब ख़ाक बना सकते हैं,
ये घास-फूस के तिनके।
कहीं पेट किसी का भरते हैं,
किसी को रोजी-रोटी भी दे जाते हैं,
चादर बन हरित धरा पर छा जाते हैं,
ये घास-फूस के तिनके।
कभी चिड़ियों का घर बन जाते हैं,
कभी नदिया के किनारे तन जाते हैं,
कभी मुहावरा बन समझा जाते हैं,
ये घास-फूस के तिनके।
काम अनोखे कर जाते हैं,
ये घास-फूस के तिनके।
कीमत खुद की बता जाते हैं,
ये घास-फूस के तिनके।