*** ” तितली : प्रकृति की अनुपम उपहार…!!! ” ***
*** :: ओ पतरीली , नभ न्यारी , जग प्यारी ;
” तितली ” है केवल नाम तुम्हारी ।
मंजू है मन , सुरभि है रंग ;
” तिली ” छटा सोहत चाँद ‘ पर ‘ में ,
मानों जिमीं लुलोहित पतंग ।
चमन की है तू आली ,
मधुवन की है तू मतवाली ;
भोली-भली और है तू…
कितनी नेक-निराली ।
देख तुझे…!
बन जाते रागी-बैरागी..
बगियों की माली ।
नील अम्बर में , इठलाती-शरमाती..!
‘ पराग-मधुरस ‘ की पी जाती है ,
भर-भर थाली ।
मदमाती-गुनगुनती सूरमयी….! ,
तू है नेक मन की मतवाली ।
*** :: चारु चंद्र-सी चंचल मन ,
करती स्वागत् वसुंधरा और धवल गगन ।
रवि-किरण-सी लालायित , कविराय मन…..!
सरगम-संगीत नीर बहाए बागियों की चमन ;
और पाज़ेब झनकार लगाये अंतर्मन ।
बागों में बयारों के संग ,
मंजूषा-शीतला नयन ,करती नृत्य-मथन ;
मानों जैसे कोई खंजन-विहंग ।
कलियों से मुस्कराती-गीतगाती ,
और शायद भैंरे देख नयनों से शरमाती ।
लाजवंती-रसवंती मदमाती ,
मोर शिखा-सी पंखुड़ी-वली निर्मल सुमन ।
करती अभिनंदन-वंदन ,
‘ पर ‘ पतली-सी पंखुड़ी-वली तन ।
क्षितिज-कालिंदी की है तू आली (सखी) प्यारी ;
जग ने सुलोचना , मन-शोभना ,
चंचल परी और अनेक नाम पुकारी ।
कहय् कवि पागल आवारा…..!!
और न कोई नाम जगारी ,
” तितली ” है केवल नाम तुम्हारी ।
” तितली ” है केवल नाम तुम्हारी ।
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
०३ / १० / २०२०