” तितली और नन्ही हथेली ” ———————- अहा ! रंग बिरंगी तितलियाँ ।
” तितली और नन्ही हथेली ”
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अहा ! रंग बिरंगी तितलियाँ ।
अहा ! सुंदर सुंदर तितलियाँ ।।
सहसा मन में बोल पड़ी ।
तितली के संग वह दौड़ पड़ी ।।
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तितली फूल फूल पात पात ।
नन्ही हथेली उसके साथ साथ ।।
तितली उसको छल रही थी ।
आँख मिचौली खेल रही थी ।।
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होठों से वो बुदबुदा रही थी ।
जैसे तितली को कुछ कह रही थी ।।
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तितली तो है चंचला ।
वो भी थकती क्यों भला ।।
जितनी करती तितली मस्ती ।
उतनी साथ साथ वो हँसती ।।
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तितली आ बैठी इक टहनी झाड़ ।
उसने समझा तितली मानी हार ।।
खुशी से उसका न कोई ठिकाना ।
निश्छल था प्रेम भरा मुस्काना ।।
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खिलखिलाकर उसका ताली बजाना ।
कहा जीत मेरी हुई तू अब उड़ जाना।।
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सहसा घरघराहट कानों में गूंजी ।
हडबडाहट में मुझको कुछ न सूझी ।।
बिस्मित मैं नींद से जगी थी।
ये तो दरवाजे की घंटी बजी थी।।
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न खिलखिलाहट न हँसी थी।
वो तो बचपन की मेरी हँसी थी।।
वो तो बचपन की मेरी खुशी थी।
न वो तितली थी न नन्ही हथेली थी ।।
*
नैनों से मेघा की झड़ी थी।
द्वार खोलने कदम चल पड़ी थी।।
खटाक………………..
#पूनम_झा।कोटा , राजस्थान |
** 18-11-16
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