तितलियों सी परियां
****तितलियों सी परियां*****
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बस में सफर करते हुए अचानक
ध्यान भंग-उस ओर हुआ आकृष्ट
जहाँ सड़क के साथ चलते बगल में
सरसों के पीले-पीले खेत उद्यान में
सरसों के फूलों सी सुन्दर परियां
लाल पीली तितलियों सी परियां
कतार में खड़ी कंधे पर हाथ धरे हुए
मधु सी मधुर मुस्कुराहट बिखेरते हुए
फूलों सी सुगंधित सुगंध बिखेरती
मंडराते भँवरों को आमंत्रित करती
फ़लक से ज़मीन पर वे उतरी हुई
सुन्दरता की छटा सी बखेरती हुई
भरे यौवन को आँचल में समेटती हुई
खुद के जौबन से खुद ही शर्माती हुई
नागिन सी डसती हुई हसीं जवानियाँ
युवा दिलों पर करती हुई मनमानियां
झांझर के घुँघरू सी खनकती हंसी
लगती थी ऐसे जैसे प्रेमजाल में फंसी
चिड़ियों सी चहकती हुई हसीनाएं
शिकार को जैसे जाल में हों फंसाए
महकती,दहकती,मचलती अप्सराएं
बादलों को भी बिन मौसम बरसाएं
चाँद की चाँदनी सी शांत,शीतल,शालीन
जेठ की दोपहरी सी दहकती ज़मीन
प्रकृति-रंग वैभव में निज को रंगती
लावण्य रूप सौन्दर्य से हो ठगती
जड़ सा अचेतन कर दिया नेस्तनाबूद
नजरें चाह कर भी नहीं कर रही थी कूच
टकटकी लगाए देख रही थी उस ओर
जहाँ खड़ी थी वे सुन्दरियां जिस ओर
जब तक दिखती रही उस छोर
निगाहें टिकी वहीं देखती रही दौर
सुखविंद्र हो गया पूर्णता निढाल
आँखों में छाये रहे उन्हीं के ख्याल
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)