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13 Jan 2022 · 8 min read

तालों की खरीद प्रक्रिया(हास्य व्यंग्य)

हास्य कथा : ताले की खरीद-प्रक्रिया
******************************
दीपक बाबू एक सरकारी दफ्तर के इंचार्ज होने के नाते वैसे तो हमेशा ही बहुत सोच समझ कर फैसले लेते थे, लेकिन इस बार जब उनके दफ्तर में चौकीदार ने कहा कि दरवाजे पर डालने के लिए सुरक्षा के हिसाब से एक ताला और खरीद लिया जाए तो दीपक बाबू कुछ ज्यादा ही चौकन्ना हो गए।
कहने लगे ” तुम्हारा आशय सुरक्षा उपकरण से है ?”
चौकीदार की समझ में कुछ नहीं आया। बोला “साहब मैं तो सिर्फ एक ताला खरीदने की बात कर रहा हूं ।”
दीपक बाबू ने कहा “तुमने अभी अभी कहा था कि सुरक्षा के हिसाब से …..?”
चौकीदार बोला “साहब ! ₹100 दे दीजिए। मैं एक ताला बाजार से खरीद लेता हूं ।”
दीपक बाबू का दिमाग तेजी के साथ चलने लगा। कहने लगे “मामला बहुत गंभीर है इस मामले में इतनी लापरवाही के साथ खरीद नहीं हो सकती । सरकारी दफ्तर है ।सरकारी दफ्तर की सुरक्षा का मामला है और सुरक्षा के लिए हमें उपकरण अर्थात ताला खरीदना है । इस काम में पूरी प्रक्रिया को देखना पड़ेगा ।”
चौकीदार बेचारा चुपचाप खड़ा हो गया।दीपक बाबू बोले ” ऐसा है कि एक प्रार्थना पत्र लिखो “–सरकारी कार्यालय में सुरक्षा की दृष्टि से एक उपकरण ताला खरीदने की आवश्यकता है। तब फिर इस प्रकरण पर विचार करेंगे।”
चौकीदार ने कहा “साहब मुंह – जुबानी आपसे जो कहना था कह दिया । लिखना- पढ़ना तो मुझे आता नहीं है ।जो चाहे आप लिख लो ।”
दीपक बाबू ने कहा “मैं इस दफ्तर का इंचार्ज हूं । बगैर प्रक्रिया के कोई खरीद नहीं हो सकती। तुम्हें आवेदन तो देना ही पड़ेगा।”
मरता क्या न करता ! बेचारा चौकीदार इधर उधर कहीं गया और एक आवेदन पत्र लिखवाया। लाकर दीपक बाबू को दिया । कहा” यह लीजिए आवेदन पत्र !”
दीपक बाबू बोले ” इस पर तुम्हारे दस्तखत तो हैं ही नहीं ?”
चौकीदार ने कहा कि आप हर बार अंगूठा लगाते हो इस बार भी वही लगा सकता हूं।”
खैर दीपक बाबू ने चौकीदार का अंगूठा लगाया ।चौकीदार ने पूछा साहब अब तो काम हो गया। ₹100 दे दीजिए । ताला ले आऊं ?”
दीपक बाबू बोले -“तुम्हारा काम पूरा हो गया ।अब मैं अपना काम शुरू करूंगा। तुम जा सकते हो ।”
चौकीदार बड़बड़ाता हुआ चला गया। इसके बाद दीपक बाबू ने अपने अधीनस्थ कार्यालय के असिस्टेंट इंचार्ज को बुलाया और कहा कि एक रिपोर्ट तैयार करके लाओ कि क्या वास्तव में इस कार्यालय को ताला खरीदने की आवश्यकता है ? रिपोर्ट में यह भी उल्लेख करना कि ताला खरीदने की आवश्यकता अर्जेंट है या 10 साल के बाद ताला खरीदा जा सकता है? ”
असिस्टेंट इंचार्ज की समझ में भी कुछ नहीं आया ।उसने कहा “साहब किस चीज के बारे में आप बात कर रहे हैं ?”
दीपक बाबू बोले “ताले के बारे में पूछ रहा हूं ।साफ-साफ तो तुम्हें लिखा है !”
असिस्टेंट इंचार्ज की समझ में अभी भी कुछ नहीं आया। वह बोला” ताले से आप का मतलब क्या उसी चीज से है जो घरों में दरवाजों में लगा कर चले जाते हैं ताला लगाकर ? ”
दीपक बाबू बोले “उसी के बारे में बात कर रहा हूं ।उसी को हम लोग सुरक्षा उपकरण मानते हैं। उसी की खरीद के बारे में बातचीत चल रही है । एक ताला खरीदना है। उसके बारे में रिपोर्ट कर दो ।”
असिस्टेंट समझ गया कि दीपक बाबू का दिमाग खराब है। उसने अपने खैरियत इसी में समझी कि रिपोर्ट तैयार कर दी जाए। सात दिन में देने का निर्देश था लेकिन असिस्टेंट इन्चार्ज ने तीसरे दिन ही यह रिपोर्ट तैयार करके दीपक बाबू को दे दी, जिसमें कहा गया था कि सरकारी दफ्तर में ताले की बहुत आवश्यकता है तथा ताले के रूप में सुरक्षा उपकरण खरीदना तात्कालिक आवश्यकता है ।”
रिपोर्ट जमा करने के बाद असिस्टेंट इंचार्ज ने कहा “साहब ! ₹100 दे दीजिए मैं ताला खरीद लाऊं”।
दीपक बाबू ने हाथ नचाते हुए कहा “इतनी जल्दी थोड़े ही सुरक्षा उपकरणों की खरीद होती है ।पूरा मामला पक्का होगा, तब उसके बाद खरीद होगी। अभी इंक्वायरी और आगे बढ़ेगी। सुरक्षा उपकरण की खरीद का मामला है।”
इसके बाद असिस्टेंट इन्चार्ज चला गया ।दीपक बाबू दफ्तर की कुर्सी पर मेज के ऊपर असिस्टेंट इंचार्ज की रिपोर्ट रखकर सोचने लगे कि अब आगे क्या किया जाए। उन्होंने काफी सोचने के बाद सरकारी दफ्तर के 3 लोगों की एक कमेटी बनाई , जिसको बताया गया कि आप बाजार में जाकर अलग अलग दुकानों पर यह पता लगाएं कि कौन-कौन सी कंपनियों के ताले मिल रहे हैं ? उनकी कीमत क्या – क्या है ? तथा प्रत्येक कंपनी के ताले की गुणवत्ता किस प्रकार की है ?
कमेटी के 3 मेंबरों के पास जब दीपक बाबू ने अपना पत्र भेजा , तब वह तीनो एक साथ मिलकर दीपक बाबू के कमरे में उनके पास आकर खड़े हो गए और एक स्वर में बोले”- साहब इस मामले में तो एक्सपर्ट ऑपिनियन लेना पड़ेगी क्योंकि किस ताले की गुणवत्ता किस प्रकार की है यह बताना बहुत कठिन है”।
दीपक बाबू बोले” वस्तु की गुणवत्ता को जाने बगैर उसकी खरीद नहीं हो सकती। आप कंपनी को चिट्ठी लिखिए और उनसे पूछिए कि एक ताले की अर्थात सुरक्षा उपकरण की खरीद होनी है ।आपके कंपनी के ताले की गुणवत्ता क्या है और आपके कथन का आधार क्या है ? ”
सरकारी दफ्तर के तीनों अधिकारी दीपक बाबू की बात सुनकर सोच में पड़ गए। कहने लगे “इंचार्ज महोदय ! भला कंपनी सिर्फ एक ताले की वजह से हमारी चिट्ठी का जवाब क्यों देने लगी? एक ताले की कीमत ही कितनी- सी होती है ?”
दीपक बाबू ने उन तीनों को डांटते हुए कहा” सवाल एक ताले का नहीं है। एक ताले की कीमत का भी नहीं है। सवाल है उन हजारों लाखों रुपयों की फाइलों का जिनकी हिफाजत यह एक सुरक्षा उपकरण करता है और केवल हजारों लाखों रुपयों की सरकारी फाइलों का प्रश्न ही नहीं है , दरअसल इसके साथ है हमारी पूरी प्रक्रिया को परखने का प्रश्न कि हम सुरक्षा उपकरण किस प्रकार से खरीदते हैं?”
दफ्तर के तीनों अधिकारी अब तक यह समझ चुके थे कि इंचार्ज महोदय पागल हो गए हैं। बोले” साहब हम तो इतना ही जानते हैं ,अगर ताले की जरूरत है तो खरीद लो। एक दुकान पर जाओ। सीधा जाकर खरीद के ले आओ। उसमें ज्यादा मीनमेख क्या निकालना ?”
दीपक बाबू बोले -“बगैर मीनमेख के दुनिया में कोई और काम भले ही हो जाए लेकिन ताला नहीं खरीदा जा सकता “।
बोले “मैं तो जरूर कंपनियों को चिट्ठी लिखवाउंगा ।जब तक आप लोग चिट्ठी नहीं लिखेंगे , जानकारी एकत्र नहीं करेंगे -कोई खरीद नहीं हो पाएगी”।
बेचारे तीनों अधिकारी जानते थे कि दफ्तर के इंचार्ज महोदय पागल हैं ,बिना प्रक्रिया के यह कोई चीज खरीदेंगे नहीं। लिहाजा उन्होंने सात-आठ कंपनियों को अलग-अलग पत्र भेजकर उनके यहां बनने वाले तालों की गुणवत्ता तथा मूल्य के बारे में जानकारी मांगी।
करीब 1 महीने के बाद तीनों अधिकारी दीपक बाबू के कमरे में दाखिल हुए और बोले “यह लीजिए साहब! पांच कंपनियों की तरफ से जवाब आ गया है । आप इसका अध्ययन कर लीजिए”
दीपक बाबू ने पांचों कंपनियों की रिपोर्ट अपने हाथ में ली और तीनों अधिकारियों से पूछा -“जब आपके पास रिपोर्ट आई तो क्या आपने इसका अध्ययन नहीं किया?”
तीनों अधिकारी बोले” साहब! हमारे बस का इसका अध्ययन करना नहीं है । इसके लिए तो आपको वास्तव में किसी विशेषज्ञ की सेवाएं लेनी पड़ेगी।”
दीपक बाबू बोले “जब हमें ताला खरीदना है तो हम जितनी दूर तक भी जा सकते हैं जरूर जाएंगे ।”
लिहाजा जब ढूंढ- पड़ताल हुई तो एक ताला- विशेषज्ञ भी नगर में नजरों के सामने आ गए ।उनके पास दीपक बाबू ने दफ्तर के एक कनिष्ठ कर्मचारी को भेजा और कहा कि पांचों कंपनियों की रिपोर्ट इन से पढ़वा कर उनका अभिमत लेकर आओ।”
कर्मचारी ने ताला विशेषज्ञ के घर के दो-चार चक्कर काटे, तब जाकर ताला विशेषज्ञ हाथ आए। फिर उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी और लिख कर अपना अभिमत कनिष्ठ कर्मचारी को सौंपा। कनिष्ठ कर्मचारी ने ताला- विशेषज्ञ का अभिमत दीपक बाबू को दिया। दीपक बाबू ने कहा” चलो अब यह बात तो सही हो गई कि अमुक कंपनी का ताला खरीद के योग्य है । लेकिन प्रश्न यह है कि खरीदा कहां से जाएं ?”
असिस्टेंट इंचार्ज ने कहा -“इसमें सोचने की क्या बात है ! बाजार से खरीद लिया जाए !”
दीपक बाबू मुस्कुराए , कहा- “तुम अकल के मामले में कच्चे हो। ऐसे थोड़े ही जाकर खरीद लेंगे। हमारा उद्देश्य किसी को भी फायदा पहुंचाना नहीं है । अगर हमारे ताला खरीदने से किसी विशेष दुकानदार को फायदा हो गया ,,तो समझ लो , सारी खरीद- प्रक्रिया अपवित्र हो गई ! ”
असिस्टेंट ने बड़ी बड़ी आंखों से प्रश्न किया” इंचार्ज महोदय ! जब हम ताला खरीदने जाएंगे तो दुकानदार हमें अपने मुनाफे की वजह से ताला बेचेगा या निस्वार्थ भाव से परोपकार का कार्य समझ कर हमें ताले की बिक्री करेगा ?”।
दीपक बाबू बोले “हमारा काम किसी भी दुकानदार विशेष को लाभ पहुँचाना नहीं होना चाहिए ।”
असिस्टेंट इंचार्ज ने कहा” फिर क्या किया जाए, जिससे किसी भी विशिष्ट दुकानदार को कोई लाभ न पहुंचे ?”
दीपक बाबू बोले -“शहर में ताला विक्रेताओं की कितनी दुकानें हैं ? ”
असिस्टेंट इन्चार्ज बोला”साहब ! कम से कम 25 – 30 दुकानों पर तो मिलता ही होगा ? ”
दीपक बाबू ने आदेशित किया “सब दुकानों पर जाओ । वहां जाकर ताले की कीमत का कोटेशन लो और सारे कोटेशन लेने के बाद दफ्तर में आओ । फिर आगे की बातचीत होगी।”
असिस्टेंट इंचार्ज ने ताला खरीद – प्रक्रिया का अक्षरशः पालन करते हुए शहर की 22 दुकानों पर जाकर ताले का मूल्य पूछा, कंपनी तथा ताले का साइज बताया। तत्पश्चात लिखित में कोटेशन प्राप्त करने का प्रयास किया। इस पूरी प्रक्रिया में सिवाय एक या दो दुकानदारों को छोड़कर बाकी सभी दुकानदारों ने कोटेशन देने से मना कर दिया।
दुकानदारों ने कहा ” पागल हो गए हो ? एक ताला खरीदना है और हम तुम्हें उसका कुटेशन लिखें और उसके बाद तुम हमारे पास खरीदने आओ या न आओ, इसका भी पता नहीं ?”
केवल एक दुकानदार ने अहसान के अन्दाज में अपनी दुकान के पर्चे पर बाकायदा हस्ताक्षर सहित ताले के मूल्य की कोटेशन लिख कर दी। दूसरे दुकानदार ने सादा पन्ना फाड़कर उस पर ताले का मूल्य अंकित करके कनिष्ठ कर्मचारी को सौंप दिया और कहा कि अपने साहब को दिखा देना। उनका मन करे तो ताला खरीद लें, न मन करे तो न खरीदें।
कनिष्ठ कर्मचारी ने जब सारी बातें दीपक बाबू को बताईं तब उन्होंने स्टाफ के सभी सदस्यों को बुलाया । चौकीदार को भी बुलाया और सबके सामने चौकीदार से कहा-” दुर्भाग्य से ताले की खरीद – प्रक्रिया निर्दोष विधि से संपन्न नहीं हो पा रही है। अतः नियमानुसार ताला नहीं खरीदा जा सकता ।”
“और हां “-असिस्टेंट इंचार्ज को हिदायत देते हुए दीपक बाबू ने यह भी कहा” -” दफ्तर के लिपिक महोदय को अवगत करा देना कि स्पीड पोस्ट से आठ कंपनियों को ताले के संबंध में पत्र लिखने पर तीन सौ बीस रुपये का डाक का खर्चा आया तथा ताला- विशेषज्ञ का अभिमत प्राप्त करने की प्रक्रिया में ₹150 उनकी फीस के गए ।अतः कुल ₹470 ताले की खरीद -प्रक्रिया में खर्च हो गए ,जो रसीद सहित कार्यालय के खर्च रजिस्टर में दर्ज कर दिए जाएं”।

लेखक: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर

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