तारीफ़
तारीफ़
एक “शब्द ” पर उसमें सिमटा एक रूपसी का श्रृंगार , माँ का ममतामयी रूप , एक मासूम से बच्चे की मासूमियत भरी अदाओं का वर्णन और भी बहुत सी बातें जो तारीफ़ में सामने वाले को उसकी अहमियत बताता है ।
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नव कल्पना नव रूप सी , स्वच्छन्दित महकती ब्यार हो तुम
ओ प्राण प्रिय कटी नयन तेरे , श्यामल सा वर्ण , उस पर गिरते तेरे गेसुओं का अल्हड़ सा पन ……….!!
तेरा रोम रोम एक दर्पण , तू सुबह की जैसे हो पहली किरण
तेरी बातो में एक खनक सी है ,जैसे गोरी की पायल छन छन
तेरी चाल है जैसे हिरणी सी , उस पर तेरा यह भोला पन …!!
तेरे माथे पर बिंदिया दमके ,मानों अम्बर पर कोई चाँद सी तुम
तेरी चुडी की खन खन ऐसे , जैसे किसी संगीत की झंकार हो तुम …………..!!
लहराएँ तेरा आँचल जब जब , लगती किसी अप्सरा का अवतार हो तुम ……..
हे प्राण तेरा अप्रतिम सौंदर्य , किसी कवि की कल्पना का आधार हो तुम …….!!
मिशा