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22 Aug 2023 · 1 min read

तारीफ क्या करूं,तुम्हारे शबाब की

तारीफ क्या करू,तुम्हारे शबाब की।
तुम तो पंखुड़ी हो, लाल गुलाब की।।

चेहरे पर नूर है जैसे चांदनी का हो नूर।
खुबसूरती पाई है तुमने बे हिसाब की।।

याद ताजा हो गई,तुम्हारी दसवी क्लास की।
सीने से जब लगाई पंखुड़ी रखी किताब की।।

जाकर क्या करूंगा मैं जन्नत में अब जाकर।
जब ज़मीं पर है तस्वीर जन्नत के ख्वाब की।।

देखकर तुम्हारी गर्दन,सुराही के याद आ गई।
सुराही बेकार है जब देखी डाली गुलाब की।।

गेसू देखकर तुम्हारे,जैसे काली घटाएं हो।
लगता है देखकर,बारिस होगी बे हिसाब की।।

रस्तोगी और क्या तारीफ़ करे,तेरे हुस्न की।
तुम गज़ल बन चुकी हो मेरे ही ख्वाब की।।

आर के रस्तोगी गुरुग्राम

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