तारक छंद
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!! श्रीं !!
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तारक छंद- मापनीयुक्त वर्णिक
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करते विनती तुमसे जगदम्बे ।
कर थाम हमें वर दो अब अम्बे ।।
उर में कुछ नूतन भाव भरो माँ ।
स्वर साध सदा उपकार करो माँ ।।
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जब भी दुख हो घबरा मत जाना ।
प्रभु को उर में अपने बिठलाना ।।
सब कष्ट हटें सुख के दिन आयें ।
अपना पथ आप निरंतर पायें ।।
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राधे…राधे….!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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