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1 Dec 2023 · 2 min read

#ताम्रपत्र

🙏संस्मरण

★ #ताम्रपत्र ★

हमने नहीं मांगा था पाकिस्तान। जिन्होंने मांगा था वे प्रसन्न थे कि उन्हें उनके धर्म का देश मिल गया था। देश को टुकड़ों में बांटकर, रक्तरंजित करके प्रसन्न होनेवाले कौन थे वे लोग?

वे सब इस धरती के बेटों की ही संतान थे। कोई दो पीढ़ी पूर्व तो कोई चार पीढ़ी पूर्व मुसलमान हुए थे। केवल पूजापद्धति को बदल देने से ही क्या सभी नाते समाप्त हो जाते हैं? मनुष्य मनुष्य नहीं रहता?

माछीवाड़ा, लुधियाना का मंटो, जिसके जैसा दूजा कोई हुआ ही न, वो भी मुसलमान निकला। स्वरसाम्राज्ञी नूरजहाँ शासकों के बिस्तर ही गर्म करती रही वहाँ। लेकिन, उसे मुसलमान होना नहीं भूला? बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे गाने वाला भी तो बिचारा मुसलमान ही था। सरकार में मंत्री भी हुआ। मंत्री न रहा तो फिर गाने लगा। जब जान पर आन पड़ी तो भागा वहाँ से। लेकिन, पक्का मुसलमान था? गामा पहलवान भूख के मारे मर गया लेकिन रहा मुसलमान?

वे सब अपनों के रक्त की नदी में नहाकर अपनी विजय के मद में चूर उस ओर जा रहे थे। और वे गए भी तो कहाँ गए? उन सबकी पूँछ तो यहीं पर थी। आते रहे, जाते रहे और फिर आते रहे?

लेकिन, जिन्होंने अपनी आस्था नहीं बदली थी। जो यहीं जन्मे थे। जिनके पूर्वपितर भी यहीं के थे और जिन्होंने कोई नया देश नहीं मांगा था वे कहाँ जाते?

जो लोग इस्लाम को जान चुके थे वे बहुत पहले वहाँ से निकल चुके थे। जो बंगाल के ‘डायरेक्ट ऐक्शन’ के बाद निकले वे सोना गहना धन और अपनी अचल संपत्ति के कागज-पत्तर साथ लेकर निकल गए।

जिन्हें अपने पड़ोसियों पर बहुत विश्वास था उनमें से बहुतेरे धन-संपत्ति ही नहीं मान-सम्मान भी गंवा बैठे। उनमें भी जो कुछ अधिक ही सर्वधर्मसमभाव मानते थे अपनी अथवा अपनों की जान भी गंवा बैठे।

मेरे नाना जी प्रात:स्मरणीय श्री दीवानचन्द मैणी ‘आर्य’ आर्यसमाजी थे। वे मुंशी भी थे और वैद्य भी। और, वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कर्मठ कार्यकर्ता भी थे। स्वतंत्रता संग्राम में अनेक बार उन्होंने जेलयात्रा की। और फिर स्वतंत्रता के पश्चात हैदराबाद मुक्ति संग्राम, गौ हत्या आंदोलन और हिन्दी आंदोलन में भी अनेकों बार वे जेल गए।

जब इंदिरा गांधी ने स्वतंत्रता सेनानियों को ‘ताम्रपत्र’ देने की घोषणा की तो उनका कहना था कि यह जवाहरलाल की बेटी हमें सम्मानित करना नहीं, खरीदना चाहती है। पालतू बनाना चाहती है। जब इसका बाप हमें न खरीद सका तो इसकी क्या बिसात है?

वे नहीं गए ताम्रपत्र लेने। जाते भी कैसे? कभी देखा है शुद्ध स्वर्णाभूषणों पर तांबे का पानी चढ़ा हुआ?

मेरे अनेक पूर्वजन्मों के कर्मों का सुफल है कि मुझमें उन महापुरुष का भी अंश है।

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Hindi
111 Views

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