ताप जगत के झेलकर, मुरझा हृदय-प्रसून।
ताप जगत के झेलकर, मुरझा हृदय-प्रसून।
बाँध सब्र का टूटता, मिलता नहीं सुकून।।
और परीक्षा लो कड़ी, आएँ मुँह तक प्राण।
जितनी जल्दी हो प्रभो, पा लूँ जग से त्राण।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
ताप जगत के झेलकर, मुरझा हृदय-प्रसून।
बाँध सब्र का टूटता, मिलता नहीं सुकून।।
और परीक्षा लो कड़ी, आएँ मुँह तक प्राण।
जितनी जल्दी हो प्रभो, पा लूँ जग से त्राण।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद