तानाशाह के मन में कोई बड़ा झाँसा पनप रहा है इन दिनों। देशप्र
तानाशाह के मन में कोई बड़ा झाँसा पनप रहा है इन दिनों। देशप्रेम के आसपास एक बारीक सा झाँसा बुनने का मन है उसका, एक जाल, जिसमें प्रेम का तानाशाह फँस जाए और लोकतंत्र का आदिमराग समाप्त हो। एक बार इस देश से प्रेम ख़त्म हो तो वह नफ़रत की अपनी सत्ता स्थापित करे।
तानाशाही की रीढ़ होती है नफ़रत।
ऐसे ही तानाशाह के चंगुल में फँसे देश की कहानी है यह।
-ज्ञान चतुर्वेदी/ ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’ उपन्यास से