तानाकशी
आपके आँगन की खुशियाँ कर ही लेंगी ख़ुदकुशी।
आपको तन्हा करेगी आपकी तानाकशी ।
जख्म फिर जगने न पाए , दर्द सारी रात जागे।
आपने ऐहसां जताए, दिल के एहसासात जागे।
आपने दिल की कही तो, लोग दिल पर क्यों न लें?
गर उधर मजबूरियाँ हैं , तो इधर भी बेबसी ।।
जिनके कन्धों के सहारे, आप काबिज़ अर्श पर।
पैर उनके कट गये तो , आ गिरोगे फर्श पर।
तब न होंठों से सँभल पायेगा मुस्कानों का बोझ,
और चेहरे पर न टिक पाएगी पल भर भी खुशी ।।
हाँ, यकीनन जलजले हैं, आपके कुछ फैसले।
पर न कुछ होगा नफा गर, हमदमों के दिल जले।
है अगर पानी सलामत, प्यास तो बुझ जाएगी,
बुझ न पाएगी मगर, दिल में लगी जो आग सी।।
संजय नारायण