ताज भी झोपड़ी लगने…
जो सदा दिल के करीब थी,बो आज दूर सी लगने लगी!
जो दिल की बड़ी अजीज थी, आज बड़ी क्रूर सी लगने लगी!!
सजाया करते थे स्वप्न भी जिसके, बड़ी सिदध्त से ये दिल!
पर आज वो ,बड़ी अमीर सी लगने लगी!!
फकीर सा हूँ , आज उसके सामने ये दिल !
पर झोली फकीर की,खाली सी लगने लगी !!
सामने उसके बड़ा,होने की कोशिश कभी ना की ये दिल !
पर उसके मंका के मीनारों को देखकर,दिल का ताज भी झोपड़ी लगने लगी !!
रंजीत ₹