#ताजमहल का सच
🔱 #ताजमहल का सच ! 🔱
● विश्व की किसी भी भाषा की व्याकरण में ऐसा नियम नहीं है कि किसी मृत व्यक्ति के नाम के पहले दो अक्षर काटकर शेष के पीछे ‘महल’ शब्द लगा दो तो वो उस मृत व्यक्ति की कब्र का नाम हो जाएगा। और, मरनेवाली का नाम था, ‘मुमताज़-उल-ज़मानी’। और उस पवित्र भवन का नाम है ‘ताजमहल’। देवनागरी लिपि में ‘ज’ के नीचे एक नुक्ता (बिंदु) लगा देनेभर से उसका उच्चार बदल जाएगा। परंतु, अरबी लिपि में ‘ज’ (जीम) और ‘ज़’ (ज़े) की आकृति में बहुत भारी अंतर है। ●
अदालत (इसे न्यायालय मत पढ़ें) में याचिका दी गई है कि ताजमहल के बंद कमरों को खोला जाए। यह याचिका घोर त्रुटि है। वहाँ अनेक परिस्थितिजन्य साक्ष्य व नंगी आँखों से स्पष्ट दिखने वाले अनेकानेक प्रमाण उपस्थित हैं जिनसे अकाट्य रूप से यह सिद्ध होता है कि वो भवन अथवा वो भवनसंकुल भगवान शंकर का मंदिर तेजोमहालय है।
अदालत में किसी याचिका की अपेक्षा आवश्यकता इस बात की है कि न केवल ताजमहल अपितु समूची भारतभूमि पर विदेशी नाम-पहचान वाले सभी भवनों, मार्गों, संस्थानों व संस्थाओं का तुरंत स्वदेशीकरण करने का शासनादेश घोषित हो। अतः अदालत में याचिका प्रस्तुत करने की अपेक्षा राष्ट्रवादी सरकार से सत्यप्रतिष्ठापन की मांग करें।
आज सत्तापक्ष व विपक्ष में बहुतेरे ऐसे भी हैं जो कि बुद्धि के पीछे लट्ठ लिए पिले पड़े हैं। एक हठ यह भी है कि “सिद्ध करके छोड़ेंगे कि विदेशी आक्रांता-लुटेरे इस देश में ध्वंस नहीं निर्माण करने आए थे; और निर्माण भी ऐसा कि जिसे देखकर संसार दाँतों तले अंगुली दबा ले।”
अनपढ़ता-मूढ़ता-मूर्खता को समर्पित यह कथित देशधर्महितैषी यह भी नहीं जानते कि तेजोमहालय के सुन्दर-धवल मुख्यद्वार को अरबी लिपि से भ्रष्ट करने व दूसरी तोड़फोड़ करने को मचान बाँधने के लिए स्थानीय जनता ने लकड़ी देने से मना कर दिया था। तब मचान ईंटों की बाँधनी पड़ी थी।
नीचे औरंगज़ेब के जिस पत्र की चर्चा है, उसी पत्र में वो लिखता है कि “बरसात के इस मौसम में चारों ओर पानी ही पानी है। परंतु, आश्चर्य है कि नदी (यमुना) माँ के मकबरे से हटकर बह रही है।” वो लोग उस जगह से आए थे जहाँ शौच के बाद धोने को पानी नहीं मिलता। वो पानी के प्रबंधन को क्या जानें?
तेजोमहालय के पीछे यमुना में तलहीन कुएं बने हैं, जो अधिक पानी होने पर उसे नीचे धरती में पहुंचा देते हैं।
शाहजहाँ ही नहीं, उसके अंतिम वारिस तक किसी ने भी ‘ताजमहल’ शब्द का कहीं भी प्रयोग नहीं किया है? क्योंकि ऐसा करने से ‘तेजोमहालय’ की चोरी खुल जाती। वे उसे मुमताज़-उल-ज़मानी का मकबरा ही कहते रहे।
★ #ताजमहल — #तेजोमहालय शिवमंदिर है ! ★
हमारा देश भारत एक हज़ार दो सौ पैंतीस वर्ष तक निरंतर विदेशी दासता में जकड़ा रहा। इस कारण हमारे देश की संस्कृति व इतिहास को न केवल विकृत किया गया अपितु इसके स्थान पर दूषित विचारों को स्थापित करने की कुचेष्टा भी की गई। देश का दुर्भाग्य कि विदेशी दासता से मुक्ति के बाद सत्ता जिन हाथों में आई वे मानसिक रूप से आज भी गुलाम हैं। यही कारण है कि सत्य सामने स्पष्ट दीखने पर भी उससे मुंह चुराया जा रहा है। इसका एक ज्वलंत उदाहरण है — ताजमहल !
ताजमहल मंदिर भवन है इसके सैंकड़ों साक्ष्य ताजमहल में आज भी मौजूद हैं।
अफगानिस्थान से अल्जीरिया तक किसी भी अरब अथवा इस्लामी देश में ‘महल’ नाम से एक भी भवन नहीं है। ‘महल’ अथवा ‘ताजमहल’ संस्कृत भाषा का शब्द है।
मुमताज़-उल-ज़मानी’ शाहजहाँ की न पहली पत्नी थी और न अंतिम।
कुछ जानकारों का यहाँ तक कहना है कि उस नीच व्यक्ति के जहॉंआरा नाम की अपनी ही बेटी के साथ अनैतिक सम्बन्ध थे। और, जब यह पाप सार्वजनिक चर्चा का विषय होने लगा तब तत्काल ही धर्मगुरुओं की बैठक हुई जिसने यह निर्णय सुनाया कि “पेड़ लगानेवाले को फल खाने का अधिकार है।”
मुमताज़ से उसके प्रेम का केवल एक ही प्रमाण मिलता है कि अट्ठारह वर्ष से कम के वैवाहिक जीवन में वो उसके चौदहवें बच्चे को जन्म देते समय मर गई।
उसके पिता जहाँगीर ने अपने दरबारी लेखक से ‘जहाँगीरनामा’ में लिखवाया कि “शाहजहाँ नशेड़ी, व्यभिचारी, अनुत्तरदायी और बड़ों का अनादर करने वाला है।” किंतु, उस धूर्त ने अपने दरबारी लेखक से ‘जहाँगीरनामा’ पुन: लिखवाया और उसमें अपनी प्रशंसा लिखवायी।
शाहजहाँ का दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी ‘बादशाहनामा’ में लिखता है “मुमताज़-उल-ज़मानी को दफनाने के लिए राजा जयसिंह से मानसिंह का महल लिया गया और बदले में उसे ज़मीन का एक टुकड़ा दे दिया गया।”
मुमताज़ की एक कब्र बुरहानपुर में आज भी मौजूद है, जहाँ उसकी मृत्यु हुई थी।
ताजमहल के गुंबद पर कमल की आकृति और त्रिशूल इसके शिवमंदिर होने के स्पष्ट प्रमाण हैं।
ताजमहल के मुख्य कक्ष में जहाँ कब्र बनी है, छत के समीप बेल-बूटों के बीच एक सौ आठ बार ‘ओ३म्’ अंकित है।
ताजमहल परिसर के एक कक्ष को ‘जिलोखाना’ (रंगमहल) कहा जाता है। जहाँ नृत्य-संगीत होता है। इसका कब्र में होने का क्या औचित्य है?
ताजमहल परिसर में ‘नक्कारखाना’ भी है। जहाँ नगाड़ा, तुरही आदि वाद्य रखे जाते हैं। इसका मंदिर में उपयोग समझ में आता है परंतु, कब्र में इसका क्या काम?
ताजमहल के दोनों ओर एक जैसे दो भवन खड़े हैं जो कि दूर से आनेवाले तीर्थयात्रियों के अस्थायी निवास हेतु बनवाई गई धर्मशाला हैं। आज उनमें से एक मस्जिद कहलाता है और दूसरे भवन का हास्यास्पद नाम है ‘जवाब’।
ताजमहल परिसर में अश्वशाला व बाज़ार भी है। कब्र में इनका कोई उपयोग नहीं परंतु, मंदिर में यह आवश्यक हैं।
‘महल’ उस भवन को कहा जाता है जहाँ किसी राजा-महाराजा अथवा धनवान व्यक्ति का निवास हो न कि कब्र को।
फ्रांसीसी यात्री बर्नियर लिखता है कि शाहजहाँ की पत्नी की पहली बरसी पर वो बादशाह के परिवार के साथ मुमताज़ के मकबरे पर गया।
उसने लिखा है कि “वहाँ चाँदी के किवाड़, सोने के कंगूरे और स्थान-स्थान पर बहुमूल्य रत्न जड़े हुए थे।” उस भवन की इसी भव्यता ने शाहजहाँ को राजा जयसिंह से यह भवन छीनने को प्रेरित किया।
औरंगज़ेब का एक पत्र संग्रहालय में सुरक्षित है। जिसमें वो अपने बाप को लिखता है कि “दक्षिण की ओर जाते हुए वो आगरा में माँ के मकबरे पर गया था। वहाँ छत टपक रही थी। जिसकी मैंने मुरम्मत करवा दी है। कुछ और मुरम्मत होनी भी अपेक्षित है।” यह पत्र भी मुमताज़-उल-ज़मानी की मृत्यु के तुरंत बाद का है।
जयपुर संग्रहालय में शाहजहाँ की ओर से राजा जयसिंह को लिखे दो पत्र सुरक्षित पड़े हैं। एक पत्र में वो लिखता है कि “कुछ पत्थर और कारीगर भेजो। और, यह मेरा तीसरा पत्र है।” यह पत्र भी मुमताज़-उल-ज़मानी की मृत्यु के तुरंत बाद लिखे गए हैं। जबकि पत्थर की आवश्यकता भवन का ढाँचा जब खड़ा हो जाए उसके बाद पड़ती है। और, आज वहाँ शिलालेख लगा है जो यह कहता है कि “ताजमहल के निर्माण में बाईस वर्ष का समय लगा।”
राजा जयसिंह ने न तो पत्थर भेजा और न ही कारीगर। परिणामतः, ताजमहल की ऊपरी मंज़िल में जाइए। वहाँ कुछ कमरों के फर्श से पत्थर उखड़ा हुआ है। वही पत्थर कब्र पर लगाया गया है।
और, वहाँ केवल मुमताज़-उल-ज़मानी ही नहीं, मृत्यु के पश्चात शाहजहाँ और कुछ दूसरे लोगों की कब्रें भी वहाँ हैं। जिनमें एक दासी व शाहजहाँ की एक अन्य पत्नी की कब्रें भी हैं। अर्थात मंदिरपरिसर को पूर्णतया कलुषित करके उसे कब्रस्तान ही बना दिया गया है।
यदि कोई यह कहे कि “यदि शाहजहाँ ने मंदिरभवन का अपहरण करके उसे मकबरा बना ही दिया तो उसे वैसा ही क्यों न रहने दिया जाए? गढ़े मुर्दे उखाड़ने से क्या लाभ?”
तो जान लीजिए कि इतिहास विगत को कुरेदने से न कम है न ज़्यादा। यह अनुचित होता तो कानून द्वारा प्रतिबंधित होता। जबकि विश्व के किसी देश में ऐसी मनाही नहीं।
लखनऊ संग्रहालय में ‘बटेश्वर शिलालेख’ नाम से एक शिलापट्ट पड़ा है। उसके कुल चौंतीस में से तीन श्लोकों में बताया गया है कि ग्यारहवीं शताब्दी के राजा परमर्दिदेव ने श्वेत पत्थर के दो सुंदर भवन बनवाए। एक भगवान शंकर के मंदिर के लिए और दूसरा अपने रहने के लिए। दूसरा भवन आज एतमादुदौला (नूरजहाँ का पिता) का मकबरा कहलाता है।
तो अब?
“भारत सरकार से मांग करें कि ताजमहल के नीचे की मंज़िलों के रास्तों को खोला जाए। और समूचे विश्व को बताया जाए कि नीचे क्या छुपाया गया है। और, इस सारे कार्य की वीडियोग्रफी करवाई जाए।
(विश्वविभूति पुरुषोत्तम नागेश ओक जी के शोधग्रंथ पढ़ें ।)
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२