तांटक छंद :– ये आरक्षण खूनी हैं – भाग -१
तांटक छंद :–
ये आरक्षण खूनी हैं – भाग -१
कवि :– अनुज तिवारी “इन्दवार”
आरक्षण की बात छिड़ी तो
कुछ चेहरे मुरझाए थे |
संस्थानों के काबिल थे जो
ठोकर खा कर आये थे |
लगा सवर्णों को कुबेर ने
भेजी थी काया माया |
कुछ के घर जाकर देखा तो
हालत पे रोना आया |
ना पढ़ने के पैसे घर मे
ना खाने को रोटी थी |
आठ साल की मुन्नी आखिर
घर घर जूठन धोती थी |
पानी पी के सो जाती है
लेकिन भीख नहीं लेती |
क्यों भारत की ये आबादी
उससे सीख नहीं लेती |
प्रतिभा को तुम लूट रहे हो
पिछले सत्तर सालों से |
और मुकदमा चलबाते हो
बाबा के रखवालों से |
जाने कितनो के विकास तो
पैदा हो पछताते हैं
आरक्षण की भेंट चढ़े जो
अस्सी प्रतिशत लाते हैं
आने वाली इन नस्लों का
तुम आभास करा देते |
अच्छा होता की सवर्ण सब
नसबन्दी करवा लेते |
गर विकास पैदा भी हों तो
दलित जनों के अण्डे हों
खूब फलें फूलें भारत में
हट्टे हों मुस्तण्डे हों |
जाने कितने लोग मरे हैं
माँ की गोदी सूनी है |
आरक्षण को फाँसी दे दो
ये आरक्षण खूनी हैं |