((((तस्वीर))))
किनारे बैठा तक़दीर पढ़ रहा हूँ,
पानी में डूबी खुद की तस्वीर पढ़ रहा हूँ.
लहरों ने कहाँ कहाँ से तोड़ी,
वो जंग-ए-मैदान की शमशीर पढ़ रहा हूँ।
बेबस लाचार बैठा था जिस कश्ती पर,
समंदर के हाथ में उसकी लकीर पढ़ रहा हूँ.
ये खारे पानी का तो नही असर कोई,
अपने ज़ख्मों में नमक की तासीर पढ़ रहा हूँ।
ज़मीं पे तो सब बिक गया है,
हवा में सांसों की बची जागीर पढ़ रहा हूँ.
नोचने आयी है एक मछली मेरे पाँव की तली को,
उसके पेट में खुद की ज़मीं पढ़ रहा हूँ।
कितनी थक गई आँखे,
बादलों की अकड़ में आँसुओं की नमी पढ़ रहा हूँ.
जो बीत गए गुजरे लम्हें मेरी मुट्ठी से,
आज बर्षों बाद खुद में वो कमी पढ़ रहा हूँ।