तस्वीर
टँगी है जो तस्वीर दीवार पर
सालों से इस जगह
उस पर धूल मिट्टी घर कर गयी है
साफ कर लेती हूँ
ताकि साफ-साफ देख सकूँ
गोर वर्ण जो साफ झाँकता
वक्त ने आकर्षक
धीरे -धीरे वो चुरा लिया
मुस्कान जो मन्द
सजा करती थी चेहरे पर
धूल-धूसरित काँच
के टुकड़ों ने तोड़ कर दी है
तस्वीर जिसे मुद्दत से एकटक
देखती आ रही हूँ
वहीं मेरे वजूद की अकल्पनीय
अविरल पहचान है
एक अनकहा इतिहास इसमें
छिपा हुआ इसमें
यहीं तस्वीर मेरे मनमंदिर मे
पूजास्थल जैसी
बस के हृदय की धड़कन
मात्र बन गयी है
श्वासों का स्पन्दन यहीं से
रोज निकल
मुझे प्राण प्रेरित करता है