तस्वीर देख कर सिहर उठा था मन, सत्य मरता रहा और झूठ मारता रहा…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
उम्र से सब थे बड़े, थे पास खड़े
और हर सेकेंड वे ख़ंजर चलाता रहा
एक मासूम उम्र महज सोलह वर्ष की
चिल्लाती रही तड़पती रही
हर राहगीर देख कर उसे मारता रहा
क़सूर क्या था उसका उसे ना पता
बेक़सूर का यूँ ही जान जाता रहा
चाकू लात घूँसा के बाद पत्थर का क़हर
जुल्मी इस कदर जुल्म ढाता रहा
बेशर्म सोच और मर चुकी मानवता
चुपचाप मौत निहारता रहा
कौन बोले, क्यों बोले, उसका सगा थोड़े ही था,
मर रही थी बेटी, मार रहा था बेटा,
हर बाप और माँ बस ताकता रहा
तस्वीर देख कर सिहर उठा था मन
सत्य मरता रहा और झूठ मारता रहा…