अल्फ़ाज़
पलक झपकते सूरत तेरी
तस्वीरों में उतर गई
आँख खुली तो पता चला
ये महफ़िल फिर से बिखर गई
वैसे तो दीवाने उनके
दर से रोज गुज़रते हैं
आज मगर ठंडी हवायें
हमसे होकर गुजर गई
आँख खुली तो….
यूं तो बारिश की बूंदें भी
दीद तुम्हारा करती हैं
पर दीदार हुआ हमको तो
ज़िंदगी जैसे संवर गई
आँख खुली तो पता चला
ये महफ़िल फिर से बिखर गई
अब हर पल छिन नगमा उनका
सांसें भी दोहराती हैं
पर जो आहट हुई तुम्हारी
नज़र हमारी उधर गई
आँख खुली तो …