तस्वीर जो हमें इंसानियत का पाठ पढ़ा जाती है।
तस्वीर को देखिए और खूब देखिए, बार- बार देखिए.हो सके तो इसे सहेज कर भी रखिए जो आपको सुकून दे जायेगी। ये तस्वीर बोल रही है.जरूरत इस बात की है कि आप इसे सिर्फ महसूस करने की कोशिश कीजिए। जो हम सबों के बीच इंसानियत की पाठ को लेकर आया है। जो कह रही है दुनिया में अब भी इंसानियत बाकीं हैं। जो उस ओर भी इशारा कर रही है कि इंसानियत के लिए खड़े होने वाले लोग अब भी दुनिया में मौजूद हैं। जो वक़्त आने पर चट्टान के तरह जुल्म के शिकार लोगों के साथ खड़े मिलते हैं।
ये तस्वीर इस दौर में सुकून देने वाली है.जहाँ एक ओर नफरतों के बाजार गर्म हैं। जहाँ इंसानियत के लिए खड़े होने वाले लोगों की संख्या दिन प्रति दिन घटती ही जा रही है। आज जरूरत है इस बात की ऐसे लोगों को जाना-पहचाना जाए। जिसके लिए इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। जो किसी चीज की परवाह किए बगैर सिस्टम के जुल्म के शिकार लोगों को अपनत्व का एहसास दिला रहे हैं और उसे अपना रहे हैं।
तस्वीर को देखिए ये आपको राहत दे जायेगी। ये तस्वीर उस दौर की है जहाँ लोग ज़ुल्म(सिस्टम) के शिकार लोगों का ज़मानतदार बनने से भी भय खा रहे होते हैं। ऐसा इसलिए कहीं ऐसा ना हो आगे सिस्टम उसे अपना शिकार बना ले। खासतौर से तब जब ज़ुल्म के शिकार कोई मुसलमान हों और वो NSA और UAPA जैसे संगीन धाराओं में जेल के सलाखों के पीछे हों। अदालतों से बेल मिलने के बाद भी सिस्टम के भय के वज़ह से उनको कई महीनों तक एक जमानतदार नहीं मिल पाता हैं।
तस्वीर में जो गले लगाता हुआ शख्स का चेहरा आपको दिख रहा है. हो सकता है आप इसे पहले से जानते होंगें या ऐसा भी हो सकता है कि आप इसे नहीं भी जानते होंगे। सच तो ये है कि आज से पहले मैं भी नहीं जानता था। लेकिन अफसोस है कि मैं ऐसे इंसानियत के लिए जीने वाले शख्स को पहले से क्यों नहीं जानता था। शुक्रिया मार्क जुकरबर्ग जी का भी जिनके फ़ेसबुक के वज़ह से आज पहचान हो पाया। फेसबुक भी एक अच्छा माध्यम है दुनिया को जानने व समझने का और उनसे आगे बढ़कर सकारात्मक चीजों को एक दूसरे से शेयर कर पाने का।
तस्वीर में जो चेहरा दिख रहा है.इस नेक दिल महानुभाव का नाम कुमार सौवीर जी हैं। जो पेशे से एक पत्रकार हैं। जो अभी स्वतंत्र पत्रकारिता को अंजाम दे रहे हैं। जिसका इंसानियत ही धर्म है। जिसके सामने सबसे पहले इंसानियत ही कर्म हैं। जिसे वो पूरी तरह चरितार्थ भी कर रहे हैं। आसान से भाषाओं में कहें तो वो इंसानियत को जी रहे हैं। जो कहीं ना कहीं हम जैसों के लिए मिसाल हैं। जो उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं। वही गले लगते हुए शख्स जिसका आप चेहरा नहीं देख पा रहे हैं उनका नाम “सिद्दीक कप्पन” हैं। हाँ वही “कप्पन” जो पिछले 28 महीनों से यूपी के जेल के सलाखों के पीछे थे। जिन्हें बेगुनाही के बाद भी जिंदगी के 28 महीने जेल के काल कोठरियों में गुजारने पड़े।
आज मैं जब ये लेख लिख रहा हूँ तो यहाँ मैंने कप्पन से ज्यादा जोड़ कुमार सौवीर जी पर दिया है। ऐसा इसलिए कि ऐसे लोगों को पहचानने की जरूरत हैं। जो बिना किसी सिस्टम के भय या धार्मिक कटुता में अपने आपको ना संलिप्त करते हुए भी “सिद्दीक कप्पन” जैसे बेगुनाह पत्रकार को जेल के सलाखों से बाहर लाने में मदद कर रहे हैं।आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि कुमार सौवीर जी कितने संवेदनशील इंसान हैं। जिन्होंने कप्पन के परिवार वालों के आंखों से निकलने वाले आंसुओं को समझा। जिनके परिवार वालों ने कप्पन के बेगुनाही के बाद भी उनको बाहर लाने के लिए देश के अदालतों के चक्कर लगाए। जिन्होंने अपने जिंदगी के गाढ़ी कमाई को उसे रिहा कराने के पीछे खर्च कर दिया।
सिद्दीक कप्पन जो मूलतः केरल के रहने वाले हैं.उनका गुनाह सिर्फ़ इतना था कि वो हाथरस में ढाई वर्ष पहले सामुहिक रूप से बलात्कार के बाद कत्ल कर दी गई जिस 19 वर्षीय युवती के लाश को यूपी पुलिस ने किरोसीन तेल डालकर सरेआम फूँक डाला था.कप्पन उसी हादशे का रिपोर्टिंग करने यूपी आए हुए थे। जहाँ सरकार ने उनपर देशद्रोह और मनीलॉन्ड्रिंग का मुकदमा दर्ज कर जेल के सलाखों के पीछे डाल दिया था। जिस मामले में देश की सबसे बड़ी अदालत ने 23 सितम्बर को ज़मानत दे दिया था।
कुमार सौवीर जी गुजरे दिनों ही सिद्दीक कप्पन को रिहा कराने के लिए अपने संपत्ति के पेपर्स लखनऊ के जिला ज़ज शंकर पांडेय को सौंप कर ज़मानत बॉन्ड भरा। जिनके बॉन्ड भरने के बाद ही सिद्दीक कप्पन ढाई वर्ष बाद खुले आसमान में साँस लेने के लिए बाहर आ सके। जो पिछले कई महीनों से ज़मानतदार ना मिलने के वज़ह से बेल मिलने के बाद भी जेल के सलाखों के अंदर थे। जिनके इस नेक कामों ने सिद्दीक कप्पन को परिवार के साथ जाने वाले राह को आसान कर दिया।
ये तस्वीर जेल से बाहर आने के बाद का है जिसके बारे में खुद कुमार सौवीर जी कहते हैं कि 28 महीने बाद लखनऊ जेल से रिहा हुए कप्पन। मेरे बारे में उन्हें पहले से ही जानकारी मिल चुकी थी। मिलते ही वो सीधे गले लग गए। तो,यह हैं सिद्दीक कप्पन। उनका चेहरा तो हर पीडित और आहत पत्रकार जैसा ही है। और मैं जो कप्पन जैसे हर पत्रकार के पीछे खड़े पत्रकार को अपने गले लगाने को तैयार और ललायित था,हूं और हमेशा आगे भी रहूँगा।
ये एक ऐसी तस्वीर है.जो हमारे हजार पन्नों में लिखे शब्दों को भी फीका कर जायेगी। मैं इसलिए भी भूलकर ऐसा करने की कोशिश नहीं करूंगा। वैसे भी मेरे डिक्शनरी में ऐसे शब्दों का जोड़ भी नहीं है कि ऐसे तस्वीर के निष्कर्षों के बारे में कुछ लिख सकूँ। बस इतना ही कहूँगा ये इंसानियत के लिए बेमिसाल है। जो उस ओर इशारा कर रही है कि इससे बढ़कर कोई भी धर्म नहीं हैं। जो बता रही है आप जुल्म के शिकार लोगों के लिए खड़े होइए चाहे वो किसी इलाक़ा,जाति और मजहब के क्यों ना हों। दुनिया को ऐसी तस्वीर से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया Kumar Sauvir सर ❣️
अब्दुल रकीब नोमानी
छात्र पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग मानू (हैदराबाद)