तस्वीरों में मुस्कुराता वो वक़्त, सजा यादों की दे जाता है।
तस्वीरों में मुस्कुराता वो वक़्त, सजा यादों की दे जाता है,
परतें धूल की हटाते हीं, तेरे अस्तित्व को ज़िंदा कर लाता है।
उठते हैं तूफ़ान पुराने, और नए आशियानों को ये डुबाता है,
खुली आँखों के झरोखे से, बिखरे सपनों के टुकड़े चुन लाता है।
एहसास जो बेहोश पड़े थे, उन्हें होश की दहलीज़ दिखाता है,
दर्द जो होठों पर आ रुके, उन्हें आँखों के रस्ते बहाता है।
अब शहर में तेरे आने पर भी, तू कहाँ मिल पाता है,
बस हवाओं में एक एहसास घुला है, जो ज़हन को सुकूं दे जाता है।
वो गलियां ख़ामोशी में थमीं हैं, पर रस्ता मुझे ठुकराता है,
अपना हीं आशियाना अब मुझे, बेगानापन दिखलाता है।
शिकवे लिखे कुछ ख़त पड़े थे, जो पते को तेरे तरसाता है,
आसमानों के पार खड़ा तू, वहाँ ख़त कौन पहुंचाता है।
इक अलविदा जो हम कह ना पाए, वो दिल को आज भी सताता है,
भीड़ में अपनों के भी, मुझे मुझसे दूर ले जाता है।
हाथ में अब तेरा हाथ नहीं, पर वो साथ कहाँ खो पाता है,
बेचैनी का हर आलम, तेरा नाम लिए चला आता है।