तसव्वुर का नशा
तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है
दिवाना बिन पिए ही झूमता है // मतला //
नहीं मुमकिन मिलन अब दोस्तो से
महब्ब्त में बशर तनहा हुआ है // 1. //
करूँ क्या ज़िक्र मैं ख़ामोशियों का
यहाँ तो वक़्त भी थम-सा गया है // 2. //
भले ही खूबसूरत है हक़ीक़त
तसव्वुर का नशा लेकिन जुदा है // 3. //
अभी तक दूरियाँ हैं बीच अपने
भले ही मुझसे अब वो आशना है // 4. //
हमेशा क्यों ग़लत कहते सही को
“ज़माने में यही होता रहा है” // 5. //
गुजर अब साथ भी मुमकिन कहाँ था
मैं उसको वो मुझे पहचानता है // 6. //
गिरी बिजली नशेमन पर हमारे
न रोया कोई कैसा हादिसा है // 7. //
बलन्दी नाचती है सर पे चढ़के
कहाँ वो मेरी जानिब देखता है // 8. //
हमेशा गुनगुनाता हूँ बहर में
ग़ज़ल का शौक़ बचपन से रहा है // 9. //
जिसे कल ग़ैर समझे थे वही अब
रगे-जां में हमारी आ बसा है // 10. //