*तश्शदुत*
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
तश्शदुत
रात ढलती रही
बेचैन थी
दिन से मिलन
को बेकरार
उधर दिन की
बेकरारी
का आलम
न पूंछिये रो रहा था
शबनमी आँसु
बह रहे थे जार जार
मिलन मगर
मुतमइन था किसी
चमत्कार का
किसी और के
कब्जे में हो न सका
किस्मत तो देखिए
दोनो की सदियाँ
बीत गई यूं ही
और दिल बेचारा था
के धड्कता रहा
करता रहा इंतेजार
रात ढलती रही बेचैन थी
दिन से मिलन को बेकरार
उधर दिन की बेकरारी
का आलम
न पूंछिये रो रहा था
शबनमी आँसु
बह रहे थे जार जार