तवायफ
*******तवायफ********
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भारी घुंघरुओं से है बंधी हुई
तवायफ तन की नाजुक सी
शिला सी सख्त दिखाई देती
पर दिल की होती भावुक सी
मजबूरियों से होती घिरी हुई
नुमाइश तन की मौत्तिक सी
निज भावनाओं को दबाकर
चोट दिल पर सहे चाबुक सी
दिल में गठरी बाँधे गमों की
अदा दिखाए वो माशूक सी
बंदिशों के बंधन से बंधी हुई
आजाद दिखती है पडुंक सी
रंज के दरिया में है डूबी हुई
मुस्कराती रहे सम्मोहक सी
सुरताल पर रहती थिरकती
जिंदगी में बहके लाषुक सी
बाहर तिरस्कारी जाती है वो
हालत कोठे पर है वर्षुक सी
सुखविंद्र नजरों में प्रतिष्ठित
चाहे समझे जन भिक्षुक सी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)