तलाक़
तलाक़ तलाक़ तलाक़
एक लब्ज़ जो
कर देता है पल भर में
रिश्तों को तार तार
काँप जाती है रूह सुनकर
औरतो के साथ हो रहा
एक खिलवाड़ सदियों से
घुट घुट कर जीने को
लाचार एक औरत का
दर्द है तलाक़
मनमानी करने का षड्यंत्र
हक़ को दबाने का मंत्र
अय्याशी के लिये स्वतंत्र
कौन है इसका सूत्रधार
किसको था इसका अधिकार
क्या थी उसकी चाल
क्या मिलेगा इंसाफ
इस तलाक़ रूपी शैतान से
या फिर धर्म का चोगा
पहन छुप जायेगा
धर्म के ठेकेदारों के
फतवो में
या छोड़ जायेगा फिर से
कोई मज़बूरी या एक बेबसी
औरतों के लिये
बनेगी कोई मिसाल
या दे जायेगा एक और ताकत
पुरूषो को फिर से
अय्याशी करने का ?
औरतों को असबाब समझने का
बदलेगा इतिहास मिलेगा निस्तार
जिसका था इन्तजार
सदियों से औरतों को ?