तलाश
रेत का विस्तार..
और उस पर..
अनगिनत उलझी..
रेखाओं का श्रृंगार..
या ये नदी के पदचिन्ह..
जो गुजरी थी अनायास..
इस विस्तार से..
गायब छोड़ गई..
ये बदलती रेखाएं..
जो हवा के साथ..
ओढ़ लेती हैं…
रेत की मोटी चादर..
या ये बदलाव बनावटी है..
कोशिश है..
उष्णता छुपाने की..
रेत के विस्तार में..
थोड़ा गहरे खोद कर देखो..
नमी शायद..
आँख मींचे..
अनंत समाधी में लीन..
मिल जाये..
रेत के विस्तार की उष्णता..
उसे पा ले..