तलाश
ज़िंदगी के शोर से मैं थक सा गया हूँ ,
किसी वीराने की तलाश में भटकता फिर रहा हूँ ,
जहाँ चन्द पल सुकुँ से गुज़ार सकूँ ,
जहाँ मै रहूँ और मेरी तन्हाई ,
ना हो एहसास -ए – फ़ुर्क़त ,
ना हो शनासाई ,
जहाँ अपनी ख़ुदी को पहचान सकूँ ,
जहाँ अपने फ़र्ज और ज़र्फ़ को जान सकूँ।