तलाश सूरज की
पहले भागा
आगे-आगे सूरज
और पीछे भागा विज्ञान
बन कर धुआँ
मोटर गाड़ियों का
मिलों और कारखानों का
हर साँझ
हर सुबह
हर दिन भागती रही
आगे-पीछे सृष्टि
सूरज भागा था
मानव से डरकर
साँझ के समय
मैंने देखा
पहले तो हुआ सूरज
मानव का दुःसाहस देखकर
क्रोध से लाल
फिर ढंक गया धुएँ से
खाँसते-खाँसते।
फिर धीरे-धीरे सूरज
होता गया पीला
फिर पीत
फिर पीत तर
और फिर छुप गया कहीं जाकर
तब से रात
तलाश रही है उसे
निरन्तर
अनवरत
बिना थके