तलाश ए ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी ! तुझे चमन सा बनाने को ,
कहां से ,और कैसे पुकारें हम बहार को ।
कब तक इंतज़ार करना होगा ना मालूम ,
और कितना मनाएं इस रूठी तकदीर को ।
काश ! कहीं से तो आए कोई फरिश्ता सा ,
मिल जाए राहत इस दिल ए बेकरार को।
जो टूटा दिल जोड़ दे, सारे जख्म भर दे ,
कोई तो पुकार लाए सावन की फुहार को ।
मर – मर कर जीते रहे तरसी हुई निगाहों से ,
जागी है तश्नगी आबे हयात के एक जाम को ।
कोई तो ऐसा जाम होगा जो मिटा दे हर गम ,
जिसको पीकर भूल जाए हम सारी दुनिया को।
तेरी ढलती शाम में अब भी तलाश है “अनु”,,को,
कहीं से भेजदे खुदाया ! किसी फरिश्ते को ।