तलाक
रूपा के जन्मते ही उसकी माँ मर गई थी। दूसरी माँ आई तो उसे पालने पोसने के नाम पर लेकिन अपने तीन बच्चे पैदा करके पालने पोसने में लगी रही । और रूपा बेचारी घर के काम काज और सौतेले भाई बहनों को संभालने में। लोक लिहाज के डर से स्कूल तो भेजा गया लेकिन पढ़ाई को बिल्कुल वक़्त नहीं मिलता था। वो पढ़ने में तेज थी । जैसे तैसे उसने एम ए पास कर लिया। तभी पिता ने अपनी जिम्मेदारी का इतिश्री करते हुए उसका विवाह एक साधारण परिवार में कर दिया।
पति यूँ तो सरकारी नौकरी में था पर व्यवहार का बहुत उग्र। सास ससुर एक बड़ी विधवा और ननद एक कुंवारी ननद। पूरा गैंग था । मायके के नाम पर तो रूपा के पास कुछ नहीं था । तो किसके बल पर अपनी आवाज उठाती। चुपचाप सब सहती रहती। शादी के अगले महीने ही पता चला वो गर्भवती है। उसे बिल्कुल अच्छा नही लगा। पड़ोस की एक भाभी के साथ बाज़ार जाने के बहाने एक डॉ के पास भी गई पर उसने गर्भ गिराने से मना कर दिया। मरती क्या न करती नौ महीने बाद एक पुत्र को जन्म दिया ।
पुत्र के जन्म लेते ही एक बड़ा परिवर्तन उसे स्वयं में दिखाई दिया कि वो पूरी तरह अपने बेटे को समर्पित हो गई। दिन रात उसकी परवरिश में ही लगी रहती। शायद उसे लगा कि उसका बेटा उसका उद्धार करेगा ।बेटा भी उसे बहुत प्यार करता था लेकिन जैसे जैसे बड़ा हुआ उसे भी पता चल गया कि पैसे की जरूरतें पापा और बुआ से पूरी होनी है। माँ काम के लिए ठीक है और वो तो वो करेगी ही कहाँ जाएगी। अपने पापा और बुआ का साथ देने लगा। रूपा की स्तिथि फिर वहीं की वहीं रही। ऐसे ही दिन बीतते रहे ।
अगले पंद्रह सालों में सास ससुर एक ननद भी स्वर्गवासी हो गए । छोटी ननद ही रह गई ।ससुराल की संपत्ति छोटी ननद के नाम हुई। वो और बुलंद होकर रहने लगी। बेटा भी पंद्रह साल का हो गया था । रूपा की बिल्कुल नहीं सुनता था । रूपा चुपचाप फिर घर के कामों में लगी रहती शाम को दो घण्टे के लिये मन्दिर चली जाती।
वक़्त बीता। बेटा भी पढ़ने बाहर चला गया । अब रूपा के पास काफी वक्त बच जाता था। धीरे धीरे उसे एक गुरुजी के बारे में पता चला। उनके सत्संग में जाने लगी। उसे बहुत ही शांति का अनुभव होता था । बेटे ने भी खुद की पसन्द की लड़की से शादी कर ली थी।बेटा भी बाप पर ही गया था। बाप की जरा इज़्ज़त नहीं करता था बात बात पर खरी खोटी सुनाता था। पति को भी पहली बार बेटे बहु से डरते हुए देखा।बड़ा ही सुकून मिला ।उसपर तो कोई फर्क पड़ा ही नहीं बस इतना सा पड़ा कि उसकी बेइज़्ज़ती करने वालो में एक कि बढ़ौत्तरी हो गई।
अब उसको इस घर की चार दीवारी काटने लगी थी। उसे सत्संग की राह मिल गई थी। बाहर भी जाना होता था पर उसे पता था उसकी इजाज़त नहीं मिलेगी और कुछ धन की आवश्यकता पड़ती थी। फिर भी उसने हिम्मत करके पति से अपनी इच्छा जाहिर की। पति को फट ही जाना था । बहुत लड़ाई हुई । बेटा ननद बहु सब एक तरफ थे ।
ये सत्संग का ही असर था कि रूपा डरी नहीं । उसने भी अपना फैसला सुना दिया। उसे तलाक चाहिये। पति चिल्लाया पचास साल की उम्र में शर्म नहीं आती ऐसी बाते करते हुए। पति को तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी रूपा ऐसे कहेगी। लेकिन रूपा अडिग थी। उसने कहा वो ये घर छोड़ रही है। गुरु जी के आश्रम में ही अब अपनी बाकी ज़िन्दगी बिताएगी। उसे कुछ रु की आवश्यकता होगी। मेरा हिस्सा दे दो और बाकी आराम से रहो। मैंने भी अपने कीमती तीस साल इस घर को दिए हैं। वो कम तो नहीं। नौकरी नहीं की लेकिन इस घर में नौकरों की तरह काम किया है जो तुम लोगों को कभी नहीं दिखा । मेरा दर्द नहीं दिखा आज समाज में इज़्ज़त दिखाई दे रही है। मैंने तो अपना जीवन अब प्रभु की सेवा में लगा देना है । साथ ही तीस सालों की कमाई को भी अच्छे कामों में लगाना चाहती हूं। मुझे तलाक चाहिए ही। और इतना कहकर अपने कमरे में सोने चली गई।…….
04-08-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद