तलबगार
जब भी हाथों में कलम उठाता हूं
इस दिल के जज़्बात बयां करता हूं
तस्वीर उसकी है जो मेरे दिल में
शब्दों से कागज़ पर उतार देता हूं।।
ज़ख्म मिले है जो इस दिल को
उनको खोलकर रख देता हूं
कोई नहीं डालेगा नमक उनपर
ये मानकर सबको दिखा देता हूं।।
मेरी खामोशी जो सुन न सका
मेरी आंखों को जो पढ़ न सका
मेरी यादों को जो संजो न सका
उस बेरहम को फिर से सुना देता हूं।।
सुनते है सभी मेरे दिल की बातें
समझते भी है कुछ दिल की बातें
महसूस करे मेरे दिल की बातों को
हो कोई ऐसा, बार बार लिख देता हूं।।
आज नहीं तो कल वो समझेगा
स्वीकार मुझे फिर वो भी करेगा
जल्द आएगा वो दिन भी जीवन में,
सोचकर उसकी यादों में खो जाता हूं।।
फिर हाथों में कलम उठा लेता हूं
उसके सपने कागज़ पर उकेर लेता हूं
हालात दिल के बयां करके फिर
एक और कविता लिख देता हूं।।
कभी जाता हूं उसकी गलियों में
उसकी खुशबू महसूस कर लेता हूं
दिख जाए कहीं मुझे वो फिर अगर
दूर से ही उसको आवाज़ दे देता हूं।।
ये बात अलग है की वो, अनसुना
कर देता है मेरी हर पुकार को
रीत पुरानी है ये इस जग की,मिलता
नहीं कभी जो चाहिए तलबगार को।।