तर्पण २
तर्पण
क्रम-२.
जिन पितर का स्वर्गवास हुआ है, उनके किये हुए उपकारों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना, उनके अधूरे छोड़े हुए पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने में तत्पर होना तथा अपने व्यक्तित्व एवं वातावरण को मंगलमय ढाँचे में ढालना मरणोत्तर संस्कार का प्रधान प्रयोजन है. गृह शुद्धि, सूतक निवृत्ति का उद्देश्य भी इसी से जुड़ा हुआ है. देवावाहन, यज्ञ आदि की क्रियाएँ इसी निमित्त की जाती हैं; किन्तु तर्पण में केवल इन्हीं एक पितर के लिए नहीं, पूर्वकाल में गुजरे हुए अपने परिवार, माता के परिवार, दादी के परिवार के तीन-तीन पीढ़ी के पितरों की तृप्ति का भी आयोजन किया जाता है. इतना ही नहीं इस पृथ्वी पर अवतरित हुए सभी महान् पुरुषों की आत्मा के प्रति इस अवसर पर श्रद्धा व्यक्त करते हुए उन्हें अपनी सद्भावना के द्वारा तृप्त करने का प्रयत्न किया जाता है.
हमारे धर्मशास्त्रों में तर्पण के छ: भाग हैं :-
१. देव तर्पण
२. ऋषि तर्पण
३. दिव्य मानव तर्पण
४. दिव्य पितृ तर्पण
५. यम तर्पण
६. मनुष्य पितृ तर्पण.
देव
देव शक्तियाँ ईश्वर की वे महान् विभूतियाँ हैं, जो मानव-कल्याण में सदा नि:स्वार्थ भाव से प्रयत्नरत हैं. जल, वायु, सूर्य, अग्नि, चन्द्र, विद्युत तथा अवतारी ईश्वर अंशों की मुक्त आत्माएँ एवं विद्या, बुद्धि, शक्ति, प्रतिभा, करुणा, दया, प्रसन्नता, पवित्रता जैसी सत्प्रवृत्तियाँ सभी देव शक्तियों में आती हैं. यद्यपि ये दिखाई नहीं देतीं, तो भी इनके अनन्त उपकार हैं. यदि इनका लाभ न मिले, तो मनुष्य के लिए जीवित रह सकना भी सम्भव न हो. इनके प्रति कृतज्ञता की भावना व्यक्त करने के लिए यह देव तर्पण किया जाता है.
ऋषि
व्यास, वसिष्ठ, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, नारद, चरक, सुश्रुत, पाणिनि, दधीचि आदि ऋषियों के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति ऋषि तर्पण द्वारा की जाती है.
दिव्य मनुष्य
जो पूर्ण रूप से समस्त जीवन को लोक कल्याण के लिए अर्पित नहीं कर सके; पर अपना, अपने परिजनों का भरण-पोषण करते हुए लोकमंगल के लिए अधिकाधिक त्याग-बलिदान करते रहे, वे दिव्य मानव हैं. जैसे सनकादि सप्त ऋषि- सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, बोढु और पञ्चशिख, फिर राजा हरिश्चन्द्र, रन्तिदेव, शिवि, जनक, पाण्डव इत्यादि दिव्य मनुष्य हैं.
दिव्य पितर
जो कोई लोकसेवा एवं तपश्चर्या तो नहीं कर सके, पर अपना चरित्र हर दृष्टि से आदर्श बनाये रहे, उसपर किसी तरह की आँच न आने दी. अनुकरण, परम्परा एवं प्रतिष्ठा की सम्पत्ति पीछे वालों के लिए छोड़ गये. ऐसे लोग भी मानव मात्र के लिए वन्दनीय हैं, अत: इन्हें हम दिव्य पितर समझते हैं.
यम
यम नियन्त्रण कर्ता शक्तियों को कहते हैं. जन्म-मरन की व्यवस्था करने की जिसमें शक्ति हो, वह यम है. मृत्यु को स्मरण रखें, मरने के समय पश्चाताप न करना पड़े, इसका ध्यान रखें और उसी प्रकार की अपनी गतिविधियाँ निर्धारित करें, तो समझना चाहिए कि यम को प्रसन्न करने वाला तर्पण किया जा रहा है. राज्य शासन को भी यम कहते हैं. अपने शासन को परिपुष्ट एवं स्वस्थ बनाने के लिए प्रत्येक नागरिक को, जो कर्तव्य पालन करना है, उसका स्मरण भी यम तर्पण द्वारा किया जाता है. अपने इन्द्रिय निग्रहकर्त्ता एवं कुमार्ग पर चलने से रोकने वाले विवेक को यम कहते हैं. इसे भी निरन्तर पुष्ट करते चलना हर भावनाशील व्यक्ति का कर्त्तव्य है. इन कर्तव्यों की स्मृत्ति यम-तर्पण द्वारा की जाती है.
मनुष्य पितर
परिवार से सम्बन्धित दिवंगत नर-नारियों का क्रम, यथा (१)पिता, बाबा, परबाबा, माता, दादी, परदादी. ( २) नाना, परनाना, बूढ़े परनाना, नानी, परनानी, बूढ़ी परनानी. (३) पत्नी, पुत्र, पुत्री, चाचा, ताऊ, मामा, भाई, बुआ, मौसी, बहिन, सास, ससुर, गुरु, गुरुपत्नी, शिष्य, मित्र आदि.