तर्क-ए-उल्फ़त
तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम कैसे निभाऊँ बोलो,
ख़ुद – परस्ती में कहीं मैं न गँवा दूँ खुद को।
इश्क में अश्क बहें नैन पुकारें तुझको।
जब तलक दीद न हो चैन न आए मुझको।
नीलम शर्मा ✍️
तर्क-ए-उल्फ़त – विलग रिश्ते