“तर्के-राबता” ग़ज़ल
बहते दरिया के रुख़ को आज मोड़ आया था,
मैं तो परबत की, बाँह ही, मरोड़ आया था।
वज़ू के वास्ते भटके वो, थी तौहीन मेरी,
मैं उसके जिस्म पे, दामन निचोड़ आया था।
उफ़ वो लमहा, जो तर्के-राबता हुआ उससे,
अपने हाथों से मैं क़िस्मत ही फोड़ आया था।
जवाब कुछ दिनों से बन्द था आना उसका,
न जाने किससे अब वो रब्त जोड़ आया था।
गुलाब सूख चुका था जो, वही साथ रहा,
ज़माने भर से मैं, रिश्तोँ को तोड़ आया था।
क्या हो गुज़री नहीं है इल्म कुछ मुझे “आशा”,
उसकी आंखों मेँ चन्द ख़्वाब छोड़ आया था..!
वज़ू # नमाज़ से पहले हाथ,पैर,मुंह आदि धोना, To wash body parts before offering prayers
तर्के-राबता # सम्बन्ध- विच्छेद, break up in relationship
रब्त # रिश्ता, relationship
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