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27 Aug 2018 · 1 min read

तरूणी

#नमन_ख़याल_परिवार
विधा ? #कविता (छंद मुक्त)
????????
तरूणी
*******************
गजगामिनी हे दामिनी,
तू कामिनी भवभामिनी।
तेरे गात जैसे मद्य भरे,
शोभित सजल कुन्तल घने।।

कारे नयन जस मेघ से,
विचलित मधुप है देख के।
तू नख से सिख तक सज रही,
काया तू कंचन दिख रही।।

तरुणी तेरे श्रृंगार से,
प्रज्वलित वह्नि तुषार से।
तुझे देख मधुकर मग्न है,
जैसे धुनि जलमग्न है।।

तेरे रूप जैसे दामिनी,
लगती तू किसलय कामिनी।
तू अनुकृति भगवान की,
यह रूप है सम्मान की।।
*********
✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
पूर्णतया मौलिक, स्वरचित, स्वप्रमाणित, अप्रकाशित
….
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार

Language: Hindi
4 Likes · 318 Views
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